मैनेजमेंट के गुण छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन से, वर्तमान परिपेक्ष में छत्रपति शिवाजी महाराज के किये गये कार्यो की प्रासांगिकता

जय मल्हार, जय भवानी जय शिवाजी, हर हर महादेव” में बचपन से ये नारे, उदघोष सुनता आ रहा हूँ, मेरे माता पिता, संगी साथियो से ये उदघोष सुने हे, मेरे मन में हमेश से रहा हे की छत्रपति शिवाजी महाराज कोन हे,क्या हे, क्या केवल जय घोस तक सिमित हे या उन्होंने जो कार्य किये हे उनको जानने तक सिमित हे|

मेरे मन में प्र्शन उठ रहे थे की शिवाजी महाराज ने ३५० वर्ष पूर्व अफजल खान को मारा, किले जीते, औरगजेब के आगे सर नहीं झुकाया और हिंदवी स्वराज स्थापित किया, क्या यही शिवाजी महाराज हे, केवल इतना करने पर हम उनकी अब तक जय जय कार कर रहे हे, और जो उन्होंने कार्य किये हे वे मेरे आज वर्तमान में किस काम के ?

यह प्रशन मेरे दिलो दिमाग में घर कर गया और इस प्रशन वाचक चिन्ह का उत्तर खोजने का मेने प्रयास किया की शिवाजी महाराज के किये गए कर्यो से में अपना आज कैसे सुधार सकता हूँ –

शिवाजी महाराज को उनके पिता श्रीमंत शाहजी राजे भोसले से पुणे की जागीरी मिली थी वे उस समय मात्र १४ वर्ष के थे उनके पास २००० सेनिको की फौज थी और एक किला, आज के परिपेक्ष में देखु तो एक कलेटर के बराबर का ओहदा , में इस पद पर या इसके बराबर के पद पर रह कर खुश होता और आराम के साथ अपना जीवन जीता, साथ ही शिवाजी महाराज के पास और भी रास्ते थे उनके पिता आदिल शाह की फौज में बहुत बड़े पद पर थे और उस समय मराठाओ का प्रतिनिधित्व कर रहे थे तो उनकी पंहुच औरगजेब दिल्ली तक भी थी फिर क़ुतुब शाही तो थी ही, उस समय शिवाजी महाराज के पास अवसर था की वे आराम से अपना जीवन यापन कर सके और किसी की भी शरण में जा कर कोई उच्च पद ले |

लेकिन उन्होंने चौथा ही ऑप्शन चुना और वो था अपने लोगो को मुगलो के अत्याचार से बचाना और स्वयं का स्वराज स्थापित करना ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार आज हम सरकारी या प्राइवेट नौकरी ना करते हुए अपना स्वयं का रोजगार स्थापित करे जिससे अन्य लोगो को भी रोजगार दे सके, आज की भाषा में उसे इंटरप्रेन्योर कहते हे, इस लिए इंटरप्रेन्योर की शुरुआत शिवाजी महाराज के द्वारा की गयी ये कहा जा सकता हे |

शिवाजी महाराज ने २ वर्ष तक अपने आस पास की जमीन जंगल लोगो से मेल जॉल बढ़ाया जब तक हम अपने आस पास की प्रकृति से नहीं जुड़ेंगे तब तक वह भी अपने से नहीं जुड़ेंगे, सयाद्री में जीवन बहुत कठिन था पहाड़, जंगली जानवर, पेड़, झाडी झंकड, और लोग , लोग शब्द यहाँ उपयोग किया जा रहा क्यों की उस समय मुगलो का आतंक था, खेतीबाड़ी सब नष्ट थी,रोजगार था नहीं , आज के परिपेक्ष में देखे तो हम अपनी प्रकृति से बहुत दूर हे हमे पेड़ पोधो की जानकारी नहीं हे, हमें शुद्ध हवा खान पान की महत्तता नहीं मालूम और सबसे महत्व की चीज हमें अपने पड़ोस के लोगो के बारे में जानकारी नहीं हे, सम्बद्ध नहीं हे मेल जॉल नहीं हे, शिवाजी महाराज ने विषमता को अपनी क्षमताओं में बदला, जो पेड़ पताकाये पहाड़ लोग राह में अवरोध थे उन्हें अपना मित्र बनाया, पहाड़ो पर चलने के लिए रास्तो का निर्माण किया, खेती योग्य जमीन लोगो को उपलब्ध करायी, वनस्पतियो का उपयोग ओषधियों में किया, अपनी सेना के प्रक्षिशण में पहाड़ो और जंगलो का उपयोग किया, आज के परिपेक्ष में हम अपनी प्रकृति से दूर होते जा रहे हे, जंगल काटे जा रहे अंधाधुन निर्माण किये जा रहे हे अगर हम प्रकृति से साथ मित्रता का भाव रखेंगे तो प्रकृति भी हमारी मित्र बन के रहेगी और सहयोग करेगी |

शिवाजी महाराज ने व्यक्तियों को जोड़ने का कार्य किया फिर वह किसी भी धर्म का हो उन्होंने हर धर्म को सम्मान की दृष्टि से देखा और अपनत्व का भाव रखा उसका उनको बहुत लाभ भी मिला उनके अंग रक्षको में हिन्दू मुस्लिम दोनों थे, गोलाबारूद (आर्टलरी सेक्शन ) प्रमुख भी एक मुस्लिम थे, उन्होंने मुगलो के सेनिको को भी अपनये यहाँ शरण दी|

"हिन्दीवी स्वराज भावे ही श्रींची इच्छा" हिंदवी स्वराज की स्थापना हेतु महाराज ने ये स्लोगन दिया था इसमें सब के लिए जगह थी बाद में कुछ लोगो ने उसका अलग ही अर्थ निकाला और कहा हिंदवी स्वराज मतलब हिन्दुओ का स्वराज या स्वतंत्रता, महाराज ने अपने शिवनेरी दुर्ग के सामने ही एक मज्जिद का निर्माण करवाया, उन्होंने हमेश सर्वधर्म संभव का सन्देश दिया, आज के परिपेक्ष में हम सब लोगो को एक रह कर रहना चाहिए, जातिविशेष से प्रेम ना करते हुए ईश्वर द्वारा निरमित प्रत्येक चीज से प्रेम करना चाहिए चाहे वह प्रकृति हो जानवर हो या इंसान सब को सम्मान के भाव से देखना चाहिए |

शिवाजी महाराज को व्यक्तियो की पहचान करना आता था कोनसा कार्य, कोन और कब कर सकता हे वह जानते थे, जैसे बाजीप्रभु देशपांडे, यशजी कनक, बहिर्जी नायक, कोड़ाजी फर्जन्द, जीवा महल, संतजी घोरपड़े,हिरोजी फरजंद, तान्हाजी मालुसरे, ये ऐसे कुछ नाम हे जो अपने अपने हुनर में एक से बढ़ कर एक थे लेकिन शिवाजी महाराज को मालूम था की किसको कोनसी मुहीम पर पहुँचाना हे और किसको क्या कार्य सोपना हे|

तन्हाजी मलसूड़े जी के पास एक घोरपड थी यशवंती जिसकी मदद से वे कठिन से कठिन दुर्गो पर एक दम से चढ़ जाते थे उन्होंने कई किले फ़तेह किये जिसमे सबसे प्रमुख था कोंढाणा, जीवा महाल जी को अपने साथ अफजल खान के साथ भेट करने वाली मुहीम में रखा था वे बिजली की गति से तलवार चलना जानते थे अफजल खान ने जब दगा किया और शिवाजी महाराज पर वार किया तो शिवाजी महाराज ने हाथ में रखे वाघनख से अफजल खान का पेट चिर दिया, वैसे ही अफजल खान का अंगरक्षक सायद बंडा ने शिवाजी महाराज के सर पर वार किया जीवा ने बिजली की गति से प्रतिउत्तर देते हुए सैयद बंडा का हाथ काट दिया और शिवाजी महाराज के प्राणो की रक्षा की तभी से कहावत प्रचलित हे "होता जीवा तर वाचला शिवा", बहिर्जी नायक शिवाजी महाराज के गुप्तचर एजेंसी के प्रमुख थे वे पल में अपना वेश बदल लेते थे, उन्होंने गुप्त सूचनाएं महाराज तक पहुंचाई जिससे स्वराज खिलता चला गया | आज के परिपेक्ष में हमें उनसे प्रेरणा लेते हुए व्यक्ति की और उसकी प्रतिभा को समझना होगा, विश्वास करना होगा, कोनसा इम्प्लइ क्या कार्य कर सकता हे, उसकी क्षमताये क्या हे, उसकी किस चीज में रूचि हे, अगर हम यह समझ गए तो परिणाम हमेश सकारात्मक आते हे |

शिवाजी महाराज एक तरफ दुर्ग किले जीतते रहे और एक तरफ उन्होंने कई किलो का निर्माण कराया जिससे दो फायदे हुए एक जहा भी सीमाएं कमजोर थी वहा स्वराज की सीमाएं मजबूत हुई और दूसरी और उनकी (प्रजा)मावङो को रोजगार मिला जिससे उनको अपना जीवन यापन करने में सुविधा हुई, आज के परिपेक्ष में हमें कोई भी एक कार्य तक सिमित नहीं रहना चाहिए प्रगति के द्वार हमेशा खुले रखने चाहिए जिससे और लोगो को रोजगार मिले, हम और वो दोनों तरक्की कर सके|

शिवाजी महाराज ने अपने कार्यकाल में सभी और समदृष्टी रखी, वे एक और अपनी प्रजा की सेवा में लगे रहे और एक और उनकी रक्षा की,उन्होंने जीवन जीने का सही तरीका बताया, उन्होंने उस समय शुद्ध जल की व्यवस्था करवाई, जिसे हम आज RO का पानी कहते हे उनहोने पानी को पहाड़ो और तालाबों में रोकने का प्रबन्ध किया और पहाड़ो पर छोटे छोटे कुंडो का निर्माण कराया जिसमे वे पानी को शुद्ध करवाने के लिए मूंगे के बीज डलवाते थे जिससे पानी शुद्ध होता हे|

एक बार शिवाजी महाराज भ्रमण पे थे उस समय कृष्णाजी सावंत जी ने एक फिरंगी तलवार भेट की थी जो उस समय पर स्टेनलेस स्टील की बानी हुई थी उसमे कीमती हिरे जवाहरात लगे हुए थे, और उसका वजन भी बहुत कम था, उन्होंने वह भेट स्वीकार तो कर ली लेकिन उसका मूल्याकन करवा कर ३०० हुन्ड़ यानि आज के लगभग ८ करोड़ रुपए उनको दिए, उसके उपरांत उन्होंने उसके जैसी और तलवार बनवाने के लिए इतिहास का पहला इंटरनेशनल टेंडर किया और उसमे कुछ जरुरी बदलाव करवाए जिससे उसका उपयोग हम लोग कर सके, हम लोगो की औसत ऊंचाई ५ सवा ५ फिट होती थी और मुगलो अफगानो की ऊंचाई ६ साडे ६ फिट होती थी जिससे उनकी तलवार हमारी गर्दन,शरीर तक आ जाती थी और जनहानि बहुत होती थी, शिवाजी महाराज ने तलवार की लम्बाई बड़ाई और वजन कम किया, और उसकी जो मुष्ठि (जहा से तलवार को पकड़ते हे )होती हे उसका निर्माण यही अपने देश वे करवाया, आज के परिपेक्ष में हमें उनसे सिख मिलती हे की कभी भी किसी से भी ज्यादा मंहगा उपहार नहीं लेना चाहिए, नहीं तो अपन कभी भी सर ऊँचा करके नहीं चल सकते हे, उपहार के बराबर की कीमत का कुछ भी उसे लौटना चाहिए, दूसरा अगर तलवार स्पेन से आयात करते तो वह एक तो महंगी होती और हमारे परिपेक्ष में उपयोगी भी नहीं होती, अपने उद्योग के लिए कच्चा माल आप बहार से ख़रीदे लेकिन जरुरत के अनुसार बदलाव करते हुए उसका निर्माण स्वदेशी ही करे |

छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी हर भूमिका में अपने आप को सिद्ध किया, वे एक पुत्र की भाती क्या और कैसे करना चाहिए उन्होंने हमें बताया, एक पिता के तो पर बच्चो का लालन पालन कैसे करना चाहिए ये सिखाया, एक पति के तोर पर क्या जिम्मेदारियां हे वह उन्होंने सिखाया, एक भई की क्या जिम्मेदारी होती हे वह कर के दिखलाया, सबसे प्रमुख एक राज को कैसे रहना चाहिए, क्या करना चाहिए, कैसे शाशन और घर को अलग अलग समय देना चाहिए ये उन्होंने अपने कार्य कलापो से सिखाया |

शिवाजी महाराज को छत्रपति शिवाजी महाराज बनने के लिए लोगो के दिलो में जगह बनानी पड़ी और वो उन्होंने खुद बनायीं, सब को कैसे संगठित करना हे, सब को कैसे साथ लेकर चलते हुए सुख समृद्धि देना हे, वह हमें छत्रपति शिवाजी महाराज ने सिखाया, आज के परिपेक्ष में हमें भी अपने घर दफ्तर और अन्य कार्य स्थल को आपस में मिक्स नहीं करना चाहिए, हर रूप में अपनी अलग अलग जिम्मेदारियां हे हमें उन्हें समझना होगा और एक पिता, भाई, पति, बेटा, या अन्य कोई भी रिश्ता हो उसे पूरी ईमानदारी से निभाना चाहिए, मानव सेवा ही नारयण सेवा हे का भाव रखते हुए, वसुंधरा कुटुम्ब्कम की तरह ही रहना चाहिए | छत्रपति शिवाजी महाराज के चरित्र को शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता, वे विलक्षण प्रतिभा के धनि थे, लगन, झुंझारूपन , सयम, धैर्य,योद्धा, प्रजावत्सल ऐसे छत्रपति शिवाजी महाराज को मेरा नमन, ह्रदय की गहरीयो से छत्रपति शिवाजी महाराज की जय |

“जय मल्हार, जय भवानी जय शिवाजी, हर हर महादेव”